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सर्वोतम
संसारिक
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कीर्ती
बहुत
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उभय
परविक्षा
परीक्षा
पिरीक्षा
प्रिरिक्षा
संर्पूण
संपूर्ण
सपूर्ण
स्म्र्पूर्ण
जयोत्सना
ज्योत्स्ना
जोत्सना
जयोतसना
सुसुप्ति
सुस्प्ती
सुश्प्ती
सुषुप्ति
सचिदानन्द
सच्चीदानंद
सच्चिदानंद
सचितानंद
पारस्परिक
नवागतरूप
नवीनीकरण
आधुनिकीकरण
उजवल
उज्जवल
उज्ज्व ल
उज्वल
अहल्या
स्वास्थय
आशीर्वाद
यमुनोत्तरी
महिलाएँ
सहस्त्र
अभीष्ट
केन्द्रीय
आर्शीवाद
ज्योत्सना
हिन्दू
शृंगार
अध्ययन
तदोपरान्त
दैदीप्यमान
देदीपमान
दैदीपमान
देदीप्यमान
अधीन
अनधिकार
निरपेक्ष
पौराणीक
मुझसे यह काम सम्भव नहीं हो सकता
वह बिल्कुल भी बात नहीं करना चाहता
यह कविता अनेक भाव प्रकट करती है।
इन दोनों में केवल यही अन्तर है
इसके बावजूद भी हमसे हिन्दी लिखने में बहुत भूल हो जाती है।
इसके बावजूद भी हमसे हिन्दी लिखने में बहुत भूले हो जाती है
इसके बावजूद भी हम लोगों से हिन्दी लिखने में बहुत भूल हो जाती है
इसके बावजूद हम लोगों से हिन्दी लिखने में बहुत भूले हो जाती हैं
पुलिस द्वारा डाकुओ का पीछा किया गया
देश की वर्तमान मौजूदा हालात ठीक नहीं है।
मैं पुस्तकालय में नित्य समय पर पहुँचता हूँ।
तुम चिन्ता न करो , मैं कोई न कोई रास्ता निकालूँगा
चिन्ह
विवर्त
अनुग्रहीत
विरहणी
ज्योतिसना
ज्योतसना